Monday 11 April 2011

गुलाब की पंखुडी

ना इस जहाँ के लिए ना उस जहाँ के लिए
हम तो मरे हैं उसके रूखसारे नूरानी के लिए
लब़ उसके खिले गुलाब की पंखुडी से
भँवरे जैसे निकले हों मेज़बानी के लिये
उसके दो अब़सार छलकते मदिरा के पैमाने
पतंगे जैसे निकले हों कुरबानी के लिये
उसके गेशुऒं मे काली घटाऎं कैद सी
जैसे अब़रे बाहरी निकले हों शैतानी के लिये
आरज़ू है उनके दामन में च़रख के तारे सजाने की
मान बैठे हैं उनहे अपना हम पूरी जिंदगानी के लिये

हाँ ये ग़मों की ये शाम आखरी है
चढ़ा दो कफ़न ये सलाम आखरी है



यूँ भर के ये अँखियाँ टपकते जो आंसू
वो कहते हैं पिलो ये जाम आखरी है
सफ़र आखरी है कदम तो मिला लो
खुदा का दिया इंतजाम आखरी है

तरपते रहे पर सुकून था बस इतना
गमे - ज़िन्दगी का इनाम आखरी है

यूँ ख्वाबों पे हर पल रहे उम्र भर जो
उन्ही के लिए ये कलाम आखरी ह

खुश्क आंखो मे कई बार झलक जाती है
खुशी मिलते ही आंखो से टपक जाती है
गमो के दौर मे ना पुछो कभी हलात इसकी
खामोशीओ मे भी ये साफ नज़र आती है
कभी मेहफिल तो कभी तन्हाई मे चुप के
कभी चमन तो कभी बाघो मे रुक के
जब कभी अपनो की याद सताती है
मोती बन के पल भर मे बिखर जाती है
उम्र का कोई तालुक नही दरमियान इस के
कभी मौका तो कभी दस्तूर ये निभाती है
बगैर इसके तो ज़िन्दगी भी अधुरी है शायद
कभी अपने तो कभी गैरो का एहसास दिलाती है
खुश्क आंखो मे कई बार झलक जाती है
खुशी मिलते ही आंखो से टपक जाती है
 वक्त से डर के रहने मेँ समझदारी भी हैवो कल राजा था
आज भिखारी भी है


औरोँ के काम आना है अच्छी बात है
मगर
इसमेँ छिपी एहसान की बिमारी भी है

वो धनवान है एक जवान बेटी का बाप

एक गरीब केँ दर का वो भिखारी भी है

बुरी नजर की आग लगाई तो खुद जलोगे

घर मेँ बहन और बेटी तुम्हारी भी है

वक्त की बाजी मेँ लगे हो खुद दांव पर

तुमसे बङा "सुमीत" कोई जुआरी भी है॥

आओ आजादी की राह पकडें
आज़ाद रहें सबको आज़ाद रखें

 कब तक गुलामी में सिसकते रहोगे
परिंदों से पिंजडों में रहते रहोगे
आओ आज़ाद हम आज ख़ुद को करते हैं
बेहतर आजादी की राह पकड़ते हैं

आओ हम आखों में छाये गैर पने को मिटायें
एक बेहतर आजादी की राह हम ख़ुद को दिखाएँ

एक बेहतर आजादी की राह ख़ुद को दिखाएँ

वो हमला तुमने ही तो किया था कभी ख़ुद पर
अब खुदा के लिए आजादी के लिए न देखो किसी पर

वो जज़्बात जो सबके लिए बने हैं आओ उन्हें बाधाएं
चंद लोग जो कर सकते हैं आओ हम भी कर दिखाएँ

एक बेहतर आजादी की राह ख़ुद को दिखाएँ


हटा दो दीवारें जात पात की अपने मन से
हटा दो बनावट का ये आवरण तुम अपने तन से
खुदा के दी लम्हों का सभी आनंद उठाएं
एक बेहतर आजादी की राह ख़ुद को दिखाएँ

बनो ऐसा की आसमा भी तुम पर फक्र रखे
आओ ग़म के अंधियारे में हर सु चमके
बचपन की मासूमियत देखो कहीं खो न जाए

एक बेहतर आजादी की राह ख़ुद को दिखाएँ

नाकामयाबी तो कामयाबी की शुरुआत है
खुदा सब देखता है बस इतनी सी बात है
आओ खुदा में है विश्वास खुदा को बताएं

एक बेहतर आजादी की राह ख़ुद को दिखाएँ


तुम ही मंजिल तुम ही राही तुम ही सफर हो सफर के
क्यूँ ढूंढते हो आसरा तुम ही आसरा हो सबके
वर्तमान को उज्जवल कर कल की राह बनायें

एक बेहतर आजादी की राह ख़ुद को दिखाएँ


तुम दुःख सुख को अपने ऊपर हावी ना होने दो
किसी का दिल न दुखों कोई दुखाये उसे जाने दो
छोटी बातों को रिश्तों के दरमियान न हम लायें

एक बेहतर आजादी की राह ख़ुद को दिखाएँ

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